Drarpitasingh8174829199's Poems

Here's the list of poems submitted by drarpitasingh8174829199  —  There are currently 9 poems total — keep up the great work!

मुसाफिर

वाकिफ तो हुए तेरी गलियों से हम
पर तुमको ही न जान सके,
तेरी बेवफ़ाई के जहरीले अंदाज को
तेरी चाहत की इन्तिहा मान बैठे।
तिनका पड़ा था तेरी आंखों में
उस पानी को तेरी मोहब्बत मान बैठे
जिस रहगुजर पर तेरे निशा

 थे
अक्सर उस रहगुजर से गुजरते रहे
...

by Arpita Singh

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जिंदग

वो सर्द गुलाबी शाम
फिर धीरे धीरे अंधेरे का बढ़ ना
टिमटिमाते तारों के बीच चांद
का अपनी दूधिया रौशनी बिखेरना
और मेरा इंतजार इसी पल का
तुम्हारे आने का
तुम आते अलाव के सामने बैठते
और मैं खिड़की से घण्टों तुम्हें देखा करती।
फिर तुम चले जाते
...

by Arpita Singh

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जिंदग

वो सर्द गुलाबी शाम
फिर धीरे धीरे अंधेरे का बढ़ ना
टिमटिमाते तारों के बीच चांद
का अपनी दूधिया रौशनी बिखेरना
और मेरा इंतजार इसी पल का
तुम्हारे आने का
तुम आते अलाव के सामने बैठते
और मैं खिड़की से घण्टों तुम्हें देखा करती।
फिर तुम चले जाते
...

by Arpita Singh

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added 1 year ago
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जिंदग

सर्दियों की वो गुलाबी शाम
फिर धीरे धीरे आसमां में चांद तारों का
दिखना
और इसी पल का इंतजार हमें रोज
जब हल्का अंधेरा बढ़ेगा
तुम अलाव के पास बैठोगे
और
मैं तुम्हें घण्टों चुपके चुपके देखूंगी
तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकते
कि उस पर का हर रोज़...

by अर्पिता सिंह

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जिंदग

सर्दियों की वो गुलाबी शाम
फिर धीरे धीरे आसमां में चांद तारों का
दिखना
और इसी पल का इंतजार हमें रोज
जब हल्का अंधेरा बढ़ेगा
तुम अलाव के पास बैठोगे
और
मैं तुम्हें घण्टों चुपके चुपके देखूंगी
तुम अंदाजा भी नहीं लगा सकते
कि उस पर का हर रोज़...

by अर्पिता सिंह

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मेरे ख्वाबों के जजीरे

का�
,

  तुम मेरे ख्वाबों के जंजीरें से बाहर आते
अचानक,

  हम तुम्हें बताते कि कैसे उन दो आंखों

  की नमी में हम डूब गए।

  हम तुम्हें उन बेकरारियो,बेताबियों के

  किस्से सुनाते,

  वो छुप के एकटक...

by Arpita Singh

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added 2 years ago
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इंसान और इंसानियत

ये सारी दिशाएं धुंधली धुंधली सी क्यूं है
हर चेहरे पर कुछ खोने के डर की तहरीर लिखी है
ये दुनिया बस मुसाफिर खाना है
नहीं समझ आ रहा तो किसी दिन किसी कब्रिस्तान में चले जाओ
हकीकत सामने होगी
इस मुसाफिर खाने से फिर अपने स्थायी ठीकाने पर जाना है।
कल...

by Arpita Singh

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added 2 years ago
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कुछ कहना था तुमसे

मुझे खबर है ये अल्फाज अब बेईमानी है,
ये अल्फाज तुम तक पहुंचेंगे भी नहीं
वक्त कहां रुका है
तुम ही क्यूं रुकते
सारे सच से वाकिफ हूं
हम कभी नहीं अब मिलेंगे जानती हूं।
लेकिन एक उम्मीद से लिख रही
अगर कभी मेरी ये तहरीर तुम्हारे
गजाली आंखों से...

by Arpita Singh

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added 2 years ago
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गुमनाम लड़की के कुछ अल्फा

ये काली स्याह अंधेरी रात
वो लड़की चमकीला आंखों वाली
अपने जज्बातों को अल्फाजों में पिरोने में माहिर
पर अब वो सिर्फ खुद से ही बातें करती है
अचानक सबकुछ बदल गया
कभी उसके तहरीरो को
लोग गौर से सुनते सराहते
अचानक पहुंची वहां
जहां उसकी हर तहरीर
...

by अर्पिता सिंह

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added 2 years ago
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